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Wednesday, June 16, 2021

मराठी व्याकरण भाग २

विरुद्धार्थी शब्द

शब्द    

अर्थ

तिरपा    

सरळ

नम्रता   

गर्विष्ठपणा

एकमत   

दुमत

उदय

अस्त

आशीर्वाद

शाप

अधिक    

उणे

धूर्त

भोळा

थोर

सान

अनुयायी   

पुढारी

धनवंत   

गरीब

निंध

वंध

दोषी   

निर्दोषी

दीर्घ

र्हीस्व

अभिमानी   

निराभिमानी

देशभक्त   

देशद्रोही

अक्कलवान   

बेअक्कल

दाट

विरळ

अनायास

सास

कृत्रिम   

नैसर्गिक

सकर्मक   

अकर्मक   

लोभी   

निर्लोभी 

लाजरा    

धीट 

साहेतुक   

निर्हेतुक

हिंसा   

अहिंसा

राजमार्ग   

आडमार्ग

श्वास    

नि:श्वास

सुर

असुर

साक्षर    

निरक्षर

सुरस

निरस

पूर्णांक   

अपूर्णांक

नि:शस्त्र   

सशस्त्र

सुजाण   

अजाण

गंभीर   

अवखळ

सुलक्षणी

कुलक्षणी

चोर   

साव

सुज्ञ   

अज्ञ

सुकाळ   

दुष्काळ

सगुण

निर्गुण

टणक   

मऊ/ मृदु

चपळ   

मंद

सुबोध

दुर्बोध

अनीती

नीती

सदैव   

दुर्दैव

दुष्ट

सुष्ट

स्वातंत्र्य   

पारतंत्र्य

साकार   

निराकार

स्वर्ग   

नरक

दिन    

रजनी

अध्ययन

अध्यापन

स्वकीय   

परकीय 

मनोरंजक

कंटाळवाणे

सौंदर्य   

कुरूपता

खंडन   

मंडन

एकी

बेकी

उघड   

गुप्त

अवखळ   

गंभीर

उथळ   

खोल

पूर्वगामी   

कर्मत

अतिवृष्टी

अनावृष्टी

रणशूर    

रणभिरू

माजी   

आजी

शाप

वर

अवनत

उन्नत

तीव्र    

सौम्य

शीतल

तप्त, उष्ण

कंजूष

उघडया

अवधान   

अनावधान

प्रसन्न   

अप्रसन्न

मर्द

नामर्द

शंका

खात्री

कृपा

अवकृपा

व्दार

जीत

गमन   

आगमन

कल्याण       

अकल्याण

ज्ञात

अज्ञात

स्तुति   

निंदा

वंध    

निंध

सत्कर्म    

दुष्कर्म

खरे

खोटे

भरती   

ओहोटी

स्थूल

सूक्ष्म, कृश

सुसंबद्ध    

असंबद्ध

हर्ष

खेद

विधायक   

विघातक

हानी    

लाभ

संघटन

विघटन

सुंदर    

कुरूप

सार्थक    

निरर्थक

स्वस्थ    

अस्वस्थ

लठ्ठ

कृश, बारीक

भरभराट

र्हास

मलूल

टवटवीत

सुसंगत   

विसंगत

तप्त

थंड

आंदी 

अनादी

धर्म    

अधर्म

सनाथ    

अनाथ

सशक्त   

अशक्त

कीर्ती   

अपकीर्ती

ऐच्छिक

अनैच्छिक

गुण    

अवगुण

अनुकूल

प्रतिकूल

उत्तीर्ण

अनुत्तीर्ण

यश

अपयश

आरंभ

अखेर

रसिक   

अरसिक

उंच

सखल

आवक   

जावक

कमाल

किमान

उच्च   

नीच

आस्तिक

नास्तिक

अल्पायुषी

दीर्घायुषी

अर्वाचीन

प्राचीन

उगवती

मावळती

अपराधी

निरपराधी

उपद्रवी   

निरुपद्रवी

कृतज्ञ   

कृतघ्न

खरेदी

विक्री

गध   

पध

उपयोगी

निरुपयोगी

उत्कर्ष   

अपकर्ष

उचित   

अनुचित

जहाल   

मवाळ

जमा    

खर्च

चढ

उतार

कर्णमधुर

कर्णकर्कश

गोड

कडू

कच्चा

पक्का

चंचल   

स्थिर

चढाई

माघार

चिमुकला

प्रचंड

जलद    

सावकाश

तीक्ष्ण   

बोथट

शक्य

अशक्य

दृश्य

अदृश्य

प्रेम

व्देष

समता   

विषमता

सफल   

निष्फल

शोक   

आनंद

पौर्वात्य

पाश्चिमात्य

मंजूर

नामंजूर

विधवा

सधवा

अज्ञान

सज्ञान

पोक्त

अल्लड

लायक

नालायक

सजातीय

विजातीय

सजीव

निर्जीव

सगुण   

निर्गुण

साक्षर   

निरक्षर

प्रकट   

अप्रकट

नफा

तोटा

सुशिक्षित

अशिक्षित

शांत   

रागीट

सुलभ   

दुर्लभ

सदाचरण

दुराचरण

सह्य    

असह्य

सधन   

निर्धन

बंडखोर

शांत

संकुचित

व्यापक

सुधारक   

सनातनी

सुदिन   

दुर्दिन

ऋणको

धनको

क्षणभंगुर   

चिरकालीन

आभ्राच्छादित    

निरभ्र

अबोल   

वाचाळ

आसक्त

अनासक्त

उत्तर   

प्रत्युत्तर

उपकार       

अपकार

ग्राह्य    

व्याज्य

घाऊक

किरकोळ

अवजड   

हलके

उदार   

अनुदार

उतरण   

चढण

जागृत   

निद्रिस्त

टंचाई

विपुलता

तारक   

मारक

दयाळू   

निर्दय

नाशवंत

अविनाशी

धिटाई   

भित्रेपणा

पराभव   

विजय

राव

रंक

रेलचेल   

टंचाई

सरळ   

वक्र

शाश्वत

आशाश्वत

सधन   

निर्धन

वियोग   

संयोग

मृर्त

अमृर्त

राकट

नाजुक

लवचिक   

ताठर

सचेतन

अचेतन

वैयक्तिक

सामुदायिक

सूचिन्ह

दुश्चिन्ह

सुकीर्ती

दुष्कीर्ती

रुचकर   

बेचव

प्रामाणिक   

अप्रामाणिक

लिखित

लिखित

विवेकी       

अविवेकी

 

समानार्थी शब्द

 

शब्द    

अर्थ

अभिनेता   

नट

उदर

पोट

एकता

एकी, ऐक्य

अंचल

स्थिर, शांत, पर्वत

अनर्थ    

अरिष्ट, संकट

कट

कारस्थान

आज्ञा

आदेश, हुकूम

आरसा    

दर्पण

अपराध    

गुन्हा

उणीव

कमतरता,न्यून, न्यूनता

अंगार    

निखारा

चाड

आवड, गरज, गोडी

अविरत   

सतत, अखंड

औक्षण    

ओवाळणे

मनोरंजन

मनोरंजन

आसक्ती

लाभ, हव्यास

गवई

गायक

ग्रंथ    

पुस्तक

किमया    

जादू, चमत्कार

अवर्षण    

दुष्काळ (पाऊस न पडणे)

 कृपण

 कंजूष, चिकट

 कृश

 हडकुळा, बारीक

 खडक

 दगड, पाषाण

 खटाटोप   

 प्रयत्न, मेहनत, धडपड

 गनीम   

 शत्रु, अरी

 गरुड

 खगेंद्र, व्दिजराज, वैनतेय

 गाणे    

 गीत

 गाय

 धेनू, गो, गोमाता

 चौफेर    

 भोवताली, सर्वत्र

 ठेकेदार        

 मक्तेदार, कंत्राटदार

 छंद

 आवड, नाद

जयघोष   

जयजयकार

गौरव

सत्कार

तृष्णा    

तहान, लालसा

छिद्र

भोक

दुजा    

दुसरा

नजराणा   

भेट, उपहार

नवनीत   

लोणी

तारू    

जहाज, गलबत

तरुण    

जवान, युवक

थवा    

समुदाय, घोळका, गट, चमू, जमाव

टंचाई

कमतरता

झोका

हिंदोळा

नारळ    

श्रीफळ, जारियल

निर्जन   

ओसाड

नौदल   

आरमार

पंक्ती    

ओळ, पतंग, रांग

मत्सर    

व्देष, असूया

मुलामा

लेप

ब्रीद

बाणा, प्रतिज्ञा

प्राप्त:काळ

उषा, सकाळ, पहाट

मकरंद    

मध

मलूल   

निस्तेज

रुक्ष    

नीरज, कोरडे

बैल    

वृषभ, खोंड,

मोहिनी

भुरळ

प्रपंच   

संसार

शिकस्त    

पराकाष्ठा 

शव   

प्रेत

विषण्ण

कष्टी

स्वेद   

घाम, धर्म

क्षुधा

भूक

सुरेल

गोड

विनय

नम्रता

विवंचना

चिंता, काळजी

क्षीण   

अशक्त

शेज

शय्या, बिछाना, अंथरूण

शिक्षक

मास्तर, गुरु, गुरुजी

साथ    

सोबत, संगत

 

काही महत्वाचे शब्द व अर्थ

शब्द

अर्थ

अकालिन

एकाएकी घडणारे

आकालिन   

अयोग्य वेळेचे

आकांडतांडव

रागाने केलेला थरथराट

अखंडित

सतत चालणारे

अगत्य

आस्था

अगम्य

समजू न शकणारे

अग्रज

वडील भाऊ

अग्रपूजा

पहिला मान

अज्रल

अग्री

अनिल

वारा

अहार

ओठ, ओष्ट

अनुग्रह

कृपा

अनुज

धाकटा भाऊ

अनृत

खोटे

अभ्युदय

भरभराट

अवतरण   

खाली येणे

अध्वर्यू

पुढारी

अस्थिपंजर

हाडांचा सापळा

अंबूज

कमळ

अहर्निश

रांत्रदिवस, सतत

अक्षर

शाश्वत

आरोहण   

वर चढणे

आत्मज

मुलगा

आत्मजा

मुलगी

अंडज

पक्षी

अर्भक

मूल

आयुध   

शस्त्र

आर्य

हट्टी

इतराजी

गैरमर्जी

इंदिरा

लक्ष्मी

 इंदू

चंद्र

 इंद्रजाल

मायामोह

 उधम   

उधोग

 उदार

मोठ्या मनाचा

 उधुक्त

प्रेरित

 कमल

मुद्दा, अनुच्छेद

 तडाग

तलाव, दार, दरवाजा

उपवन

बाग

उपदव्याप

खटाटोप

दारा

बायको

नवखा   

नवीन

नौका

होडी

उपनयन   

मुंज

भयानह

जोडे

उपेक्षा   

दुर्लक्ष

उबग

विट

ऐतधेशीय

या देशाचा

सुवास   

चांगला वास

सुहास

हसतमुख

आंग

तेज

ओनामा

प्रारंभ

ओहळ   

ओढा

अंकीत

स्वाधीन, देश

अंगणा

स्त्री

कणकं   

सोने

कटी   

कमर

कंदूक   

चेंडू

कनव   

धा

 कंटू

कंडू

 कमेठ   

सनातणी

 कर्मठ

सनातनी

 कवडीचुंबक

अतिशय कंजूस

 कसब    

कौशल्य

 कशिदा   

भरतकाम

 काक   

कावळा

 कवड

घास

 कामिनी   

स्त्री

 काया

शरीर

 कसार   

तला

 काष्ट

लाकूड

किंकर   

दास

कांता

पत्नी

कुंजर   

हत्ती

कुरंग

हरिण

कुठार

कुर्हाकड

चक्षू

डोळा

चारू

मोहक

चौपदरी    

झोळी

छाकटा

मवाली

छांदिष्ट्य

नादी, लहरी 

जर्जर    

क्षीण झालेली

जरब

दरारा

जाया

पत्नी

जान्हवी    

गंगा नदी

ठोंब्या

मूर्ख

तटाक

तलाव

तटिनी

नदी

तडीत   

वीज

तात

वडील

क्षुरंग (तुरग)

 घोडा

त्रागा

डोक्यात राग घालणे

त्रेधा

धांदल

ददात   

उणीव

दाहक

जाळणारा

दिनकर

सूर्य

दुर्धर   

कठीण

दुर्भिक्ष्य

कमतरता

धी

बुद्धी

नग

पर्वत

नंदन

मुलगा

निढळ    

कमाल

निर्जन   

ओसाड

नीरज        

कमळ (पंकज)

पेय    

पाणी, दूध

प्राची

पूर्व दिशा

पियुष    

अमृत

भुजंग

सर्प

भाऊगर्दी

विलक्षण गर्दी

मख

यज्ञ

मज्जाव

निर्बंध, हटकाव

मल्लीनाथी

टीका

मुरुत

वारा

मानभावी

लबाड (ढोंगी)

यती

संन्याशी

यादवी   

भाऊबंदकी

यातायात

त्रास

युती

संयोग

रण

युद्ध

रथी

योद्धा

रमा

लक्ष्मी

सजीव

कमळ

रिता    

रिकामा

रामबाण

अमोघ (अचूक)

ललना

स्त्री

वसुंधरा

पृथ्वी

वहिम

संशय

वायस

कावळा

वामिका

विहीर

वारू    

घोडा

वाली

रक्षणकर्ता

विवर   

छिद्र

विपिन   

अरण्य

विषाद   

खेद

वंचना   

फसवणूक

व्याळ

सर्प

वैनतेय

गरुड

सव्यापसव्य

यातायात त्रास

सरोज

कमळ

सलील   

पाणी

स्कंद

खांदा (झाडाची फांदी)

स्वेदज

किटक 

हाट

बाजार

हिरण्य

सोने

क्षणभंगुर

थोडाकाळ टिकणारे

क्षुधा    

भुक

ज्ञाता   

जाणणारा

अस्कारा

प्रसिद्धी

खुमारी

लज्जात, स्वाद

चर्वित, चर्वन

कंटाळवाणा, कथ्याकूट

चर्पटपंजरी

कंटाळवाने संभाषण

कृपमंडूक

संकुचित वृत्ती

अरण्यरुदन

वृथा कथन, निष्फळ प्रश्न

वन्हयापुत्र   

अश्यक्य गोष्ट

अव्यापारेबु

व्यापार नसती उठाठेव

चंचूप्रवेश

अल्पप्रवेश

लांगूलचालन

खुषामत

अचल

स्थिर, गतीरहित

अचला   

पृथ्वी, हातरुमाल

अनुभाव

प्रभाव

अप्रत्यक्ष/अपस्थ

अपायकारक अन्न

अरि    

शत्रू

अरी

टोचणी

अविध   

अडाणी

आजीव

जन्मभर

औस

अमावस्या

औसा

पुजारी

अंकन

मोजणे

अंकण

धान्य

अंबार

धन्याचे कोठार

कंगाळ

अस्थिपंजर

कचार

काचकाम करणारा

कच्च    

लहान खळगा

कच्चा   

न खिळलेला

कनक   

सोने

कपुत्र    

कबुतर

कानन   

अरण्य

कुच

प्रयाण

खरूस

खसखस

गरका    

वाटोळा

गोहा

गाईचे वासरू

घन

दाट

घटा    

समुदाय

पाणि    

हात

पाणी    

जल

बाशा

भीती

बाशी

शिळी

भट

ब्राम्हण

नुपूर

पैंजण

नुपूर

उणिव

निबंद    

मोकाट

भट्ट

विव्दान

भाव

भक्ती

भावा, माया

ज्येष्ठ, दीर

 

ध्वनिदर्शक शब्द

प्राणी/पक्षी

शब्द

वाघाची

डरकाळी

कोल्हयांची

कोल्हेकुई

गाईचे

हंबरणे

गाढवाचे

ओरडणे

घुबडाचा

घूत्कार

घोडयाचे

किंचाळणे

 

चिमणीची

चिवचिव

कबुतराचे/पारव्याचे

घुमणे

कावळ्याची

कावकाव

सापाचे

फुसफुसने

हत्तीचे

चित्कारणे

हंसाचा

कलख

भुंग्यांचा, मधमाश्यांचा

गुंजारव

माकडांचा

भुभु:कार

म्हशींचे

रेकणे

मोराचा

केरकाव 

मोरांची

कैकावली

सिंहाची

गर्जना

पंखांचा

फडफडाट

पानांची

सळसळ

डासांची

भुणभुण

रक्ताची

भळभळ

 

समूहदर्शक शब्द

समूह

शब्द

आंब्याच्या झाडाची

आमराई

उतारुंची

झुंबड

उपकरणांचा

संच

उंटांचा, लमानांचा

तांडा

केसांचा

पुंजका, झुबका

करवंदाची

जाळी

केळ्यांचा

घड, लोंगर

काजूंची, माशांची

गाथण

किल्ल्यांचा

जुडगा

खेळाडूंचा

संघ

गाईगुरांचे

खिल्लार

गुरांचा

कळप

गवताचा

भारा

गवताची   

पेंडी, गंजी

चोरांची, दरोडेखोरांची

टोळी

जहाजांचा

काफिला

तार्‍यांचा

पुंजका

तारकांचा

पुंज

द्राक्षांचा

घड, घोस

दूर्वाची

जुडी

धान्याची

रास

नोटांचे

पुडके

नाण्यांची

चळत

नारळांचा

ढीग

पक्ष्यांचा

थवा

प्रश्नप्रत्रिकांचा, पुस्तकांचा

संच

पालेभाजीची

जुडी, गडडी

वह्यांचा

गठ्ठा

पोत्यांची, नोटांची

थप्पी

पिकत घातलेल्या आंब्यांची

अढी

फळांचा

घोस

फुलझाडांचा

ताडवा

फुलांचा

गुच्छ

बांबूचे

बेट

भाकरीची

चळड

मडक्यांची

उतररंड

महिलांचे

मंडळ

लाकडांची, ऊसाची

मोळी

वाघाचा

वृंद

विटांचा, कालिंगडाचा

ढीग

विधार्थ्यांचा

गट

माणसांचा

जमाव

मुलांचा

घोळका

मुंग्यांची

रांग

मेंढयाचा

कळप

विमानांचा

ताफा

वेलींचा

कुंज

साधूंचा

जथा

हरणांचा, हत्तींचा

कळप

सैनिकांची/चे

तुकडी, पलटण, पथक

 

शब्दसिद्धी व त्याचे प्रकार

·         शब्द कसा तयार झाला आहे, म्हणजे सिद्ध कसा झाला आहे यालाच 'शब्दसिद्धी' असे म्हणतात.

·         शब्दांचे खालील प्रकार पडतात.

 तत्सम शब्द :

·         जे संस्कृत शब्द मराठी भाषेत जसेच्या तसे काहीही बादल न होता आले आहेत त्यांना 'तत्सम शब्द' असे म्हणतात.

·         उदा.  

·         राजा, भूगोल, चंचू, पुष्प, परंतु, भगवान, कर, पशु, अंध, जल, दीप, पृथ्वी, तथापि, कवि, वायु, भीती, पुत्र, अधापि, मति, पुरुष, शिशु, गुरु, मधु, गंध, पिता, कन्या, वृक्ष, धर्म, सत्कार, समर्थन, उत्सव, विद्वान, संत, निस्तेज, कर, जगन्नाथ, दर्शन, उमेश, स्वामि, मंदिर, तिथी, सूर्य, स्वल्प, घृणा, पिंड, कलश, प्रात:क, दंड, पत्र, ग्रंथ, उत्तम,   आकाश पाप, मंत्र, शिखर, सूत्र, कार्य, होम, गणेश, सभ्य, कन्या, देवर्षि, वृद्ध, संसार, प्रीत्यर्थ, कविता, उपकार, परंतु, गायन, अश्रू, प्रसाद, अब्ज, राजा, संमती, घंटा, पुण्य,   बुद्धी, अभिषेक, संगती, श्रद्धा, प्रकाश, सत्कार, देवालय, तारा, समर्थन, नयन, उत्सव, दुष्परिणाम, नैवेध.

 तदभव शब्द :

·         जे शब्द संस्कृत मधून मराठीमध्ये येतांना त्यांच्या मूळ रूपात काही बदल होतो त्या शब्दांना 'तदभव शब्द' असे म्हणतात.

·         उदा.    

·         घर, पाय, भाऊ, सासू, सासरा, गाव, दूध, घास, कोवळा, ओळ, काम, घाम, घडा, फुल, आसू, धुर, जुना, चाक, आग, धूळ, दिवा, पान, वीज, चामडे, तहान, अंजली, चोच, तण, माकड, अडाणी, उधोग, शेत, पाणी, पेटी, विनंती, ओंजळ, आंधळा, काय, धुर, पंख, ताक, कान, गाय.

 देशी/देशीज शब्द :

·         महाराष्ट्रातील मूळ रहिवाशांच्या बोलीभाषेमधील वापरल्या जाणार्‍या शब्दांना 'देशी शब्द' असे म्हणतात.

·         उदा.    

·         झाड, दगड, धोंडा, घोडा, डोळा, डोके, हाड, पोट, गुडघा, बोका, रेडा, बाजारी, वांगे, लुगडे, झोप, खुळा, चिमणी, ढेकूण, कंबर, पीठ, डोळा, मुलगा, लाजरा, वेढा, गार, लाकूड, ओटी, वेडा, अबोला, लूट, अंघोळ, उडी, शेतकरी, आजार, रोग, ओढा, चोर, वारकरी, मळकट, धड, ओटा, डोंगर.      

 परभाषीय शब्द :

संस्कृत व्यतिरिक्त इतर भाषांमधून मराठीत आलेल्या शब्दांना 'परभाषीय शब्द' असे म्हणतात.

 

1) तुर्की शब्द

·         कालगी, बंदूक, कजाग

2) इंग्रजी शब्द

·         टी.व्ही., डॉक्टर, कोर्ट, पेन, पार्सल, सायकल, स्टेशन, हॉस्पिटल, बस, फाईल, रेल्वे, पास, ब्रेक, कप, मास्तर, फी, बॉल, स्टॉप, ऑफिस, एजंट, टेलिफोन, सिनेमा, सर्कस, पॅंट, बॅट, पोस्ट, तिकीट, ड्रायव्हर, मोटर, कंडक्टर, नंबर, टीचर, सर, मॅडम, पेपर, नर्स, पेशंट, इंजेक्शन, बटन ड्रेस, ग्लास, इत्यादी. 

3) पोर्तुगीज शब्द

·         बटाटा, तंभाखू, पगार, बिजागरी, कोबी, हापूस, फणस, घमेले, पायरी, लोणचे, मेज, चावी, तुरुंग, तिजोरी, काडतुस.

4) फारशी शब्द

·         रवाना, समान, हकीकत, अत्तर, अब्रू, पेशवा, पोशाख, सौदागार, कामगार, गुन्हेगार, फडवणीस, बाम, लेजीम, शाई, गरीब, खानेसुमारी, हजार, शाहीर, मोहोर, सरकारमहिना हप्ता. 

5) अरबी शब्द

·         अर्ज, इनाम, हुकूम, मेहनत, जाहीर, मंजूर, शाहीर, साहेब, मालक, मौताज, नक्कल, जबाब, उर्फ, पैज, मजबूत, शहर, नजर, खर्च, मनोरा, वाद, मदत, बदल. 

6) कानडी शब्द  

·         हंडा, भांडे, अक्का, गाजर, भाकरी, अण्णा, पिशवी, खोली, बांगडी, लवंग, अडकित्ता, चाकरी, पापड, खलबत्ता, किल्ली, तूप, चिंधी, गुढी, विळी, आई, रजई, तंदूर, चिंच, खोबरे, कणीक, चिमटा, नथ, तांब्या, उडीद, पाट, गाल, काका, टाळू, गादी, खिडकी, गच्ची, बांबू, ताई, गुंडी, कांबळे. 

7) गुजराती शब्द

·         सदरा, दलाल, ढोकळा, घी, डबा, दादर, रिकामटेकडा, इजा, शेट. 

8) हिन्दी शब्द

·         बच्चा, बात, भाई, दिल, दाम, करोड, बेटा, मिलाप, तपास, और, नानी, मंजूरइमली. 

9) तेलगू शब्द

·         ताळा, अनरसा, किडूकमिडूक, शिकेकाई, बंडी, डबी. 

10) तामिळ शब्द

·         चिल्ली, पिल्ली, सार, मठ्ठा.

 सिद्ध व सधीत शब्द :

1) सिद्ध शब्द

·         भाषेत जे शब्द मुळात धातू असतात त्यांना 'सिद्ध शब्द' असे म्हणतात.

·         उदा. ये, जा, खा, पी, बस, उठ, कर, गा इत्यादी.

·         सिद्ध शब्दांचे 3 प्रकार पडतात.

अ). तत्सम  

 

ब). तदभव

 

क). देशी (यांचा अभ्यास आपण यापूर्वी केला आहे.)

 

2) साधीत शब्द

·         सिद्ध शब्दाला म्हणजेच धातूच्या पूर्वी उपसर्ग किंवा नंतर प्रत्यय लागून 'साधित शब्द' तयार होतो.

·         साधित शब्दांचे पुढील 4 प्रकार पडतात

अ)उपसर्गघटित

 

ब) प्रत्ययघटित

 

क) अभ्यस्त  

 

ड) सामासिक

 

   अ) उपसर्गघटित शब्द

·         शब्दाच्या पूर्वी जी अक्षरे जोडली जातात त्यांना उपसर्ग असे म्हणतात. तसेच अशी अक्षरे जोडून जे शब्द तयार होतात त्या शब्दांना 'उपसर्ग घटित शब्द' असे म्हणतात. 

उदा. अनुभव, अपयश, अधिकार, अवगुण अधिपती, उपहार, आकार, साकार, प्रतिकार, प्रकार इ.

·         वरील शब्दांमध्ये अनु. अप, अधि, अव, अधि, उप, , सा, प्रति,प्रइ. उपसर्ग लागलेली आपल्याला दिसतात. असे उपसर्ग लागून तयार होणार्‍या शब्दांना उपसर्ग घटित शब्द असे म्हणतात.

   ब) प्रत्ययघटित शब्द

·         धातूच्या किंवा शब्दांच्या पुढे एक किंवा अधिक अक्षरे लावून प्रत्यय तयार होतात व तयार होणार्‍या शब्दांना 'प्रत्ययघटित शब्द' असे म्हणतात.

·         उदा. जनन, जनक, जननी, जनता इ.     

·         वरील शब्दांना न,, नी ता ही प्रत्यय लागलेली आपल्याला दिसतात असे प्रत्यय लावून तयार होणार्‍या शब्दांना 'प्रत्ययघटित शब्द' असे म्हणतात.

   क) अभ्यस्त शब्द

·         एखाधा शब्दांत एका शब्दाची अथवा काही अक्षरांनी पुनरावृत्ती झालेली असते. अशा शब्दांना 'अभ्यस्त शब्द' असे म्हणतात. अभ्यसतचा अर्थ दुप्पट करणे असा होतो. 

·         उदा. आतल्या आत, शेजरीपाजारी, किरकिर इ.

·         अभ्यस्त शब्दांचे खलील 3 प्रकार पडतात.

i) पूर्णाभ्यस्त  

 

ii) अंशाभ्यस्त

 

iii) अनुकरणवाचक

 

i) पूर्णाभ्यस्त शब्द

·         एक पूर्ण शब्द जेव्हा पुन्हा येऊन जोडशब्द तयार होतो त्याला पूर्णाभ्यस्त शब्द असे म्हणतात.

·         उदा. बारीक बारीक, कळाकाळा, आतल्या आत, हळहळ, वटवट, कळकळ, मळमळ, बडबड, समोरासमोर, हळूहळू, पुढेपुढे, पैसाच पैसा, मजाच मजा, हिरवेहिरवे इ.

ii) अंशाभ्यस्त शब्द

·         जेव्हा पूर्ण शब्द हा जोडशब्दात जशाच्या तसा पुन्हा येतो एखादे अक्षर बदलून येतो तेव्हा त्या जोडशब्दांना अंशाभ्यस्त शब्द असे म्हणतात.

·         उदा. अदलाबदल, उलटसुलटा, शेजारीपाजारी, बारीकसारीक, लाडीगोडी, सोक्षमोक्ष, जिकडेतिकडे, गोडधोड, गडबड, जाळपोळ, दगडबिगड, किडूकमिडूक, घरबीर इ. 

iii) अनुकरणवाचक शब्द

·         ज्या शब्दांमध्ये एखाधा ध्वनिवाचक शब्दांची पुनरावृत्ती झालेली असते, अशा शब्दांना अनुकरणवाचक/नादानुकारी शब्द असे म्हणतात.

·         उदा. किरकिर, खडखडाट, रिमझिम, गुणगुण, घणघण, कडकडाट, टिकटिक, गडगड इ.

ड) सामासिक शब्द

·         जेव्हा दोन किंवा अधिक शब्द एकमेकांमधील परस्पर संबंधामुळे एकत्र येऊन तयार होणार्‍या शब्दाला 'सामासिक शब्द' असे म्हणतात.  

·         उदा. पोळपाट, देवघर, दारोदार इ.     

समास व त्याचे प्रकार

Must Read (नक्की वाचा):

वाक्य पृथक्करण व त्याचे प्रकार

·         काटकसर करणे हा मनुष्याच्या अंगी असलेला एकूण गुण आहे. आपण दैनंदिन जीवनात बरीच काटकसर करतो.

·         त्यामुळे आपण बोलतांना सुद्धा हा गुण वापरतो. बर्यातचदा आपण एखादे वाक्य पूर्ण न बोलता शब्दांची काटकसर करून एकच शब्द किंवा जोडशब्द तयार करतो.

·         जो त्या वाक्यातील अर्थबोध करून देतो. यालाच 'समास' असे म्हणतात.

·         अशी काटकसर करून जो शब्द तयार होतो त्यालाच सामासिक शब्द असे म्हणतात.

·         उदा.

1) वडापाव        -      वडाघालून तयार केलेला पाव.

 

2) पोळपाट       -      पोळी करण्यासाठी लागणारे पाट

 

3) कांदेपोहे       -      कांदे घालून तयार केलेले पोहे.

 

4) पंचवटी        -      पाच वडांचा समूह

 

·         समासाचे मुख्य 4 प्रकार पडतात.

1.    अव्ययीभाव समास

2.    तत्पुरुष समास

3.    व्दंव्द समास

4.    बहुव्रीही समास

 अव्ययीभाव समास :

ज्या समासात पहिला शब्द मुख्य असतो व त्या तयार झालेल्या सामासिक शब्दांचा उपयोग क्रियाविशेषणासारख केला जातो त्यास 'अव्ययीभवन समास' असे म्हणतात.

 

अव्ययीभाव समासात आपल्याला खलील भाषेतील उदाहरणे पाहावयास मिळतात.

 

अ) मराठी भाषेतील शब्द

उदा.        

1.    गोवोगाव        -     प्रत्येक गावात

2.    गल्लोगल्ली     -    प्रत्येक गल्लीत

3.    दारोदारी        -    प्रत्येक दारी

4.    घरोघरी         -    प्रत्येक घरी

·         मराठी भाषेतील व्दिरुक्ती (पहिल्या शब्दांचीच पुरावृत्ती) होऊन तयार झालेले शब्द हे क्रियाविशेषणाप्रमाणे वापरले जातात म्हणून ही उदाहरणे अव्ययीभाव समासाची आहेत.

ब) संस्कृत भाषेतील शब्द

1.    प्रती (प्रत्येक)     -   प्रतिमास, प्रतिक्षण, प्रतिदिन

2.    आ (पर्यत)        -    आमरण

3.    आ (पासून)       -    आजन्म, आजीवन

4.    यथा (प्रमाण)     -    यथाविधी, यथामती, यथाशक्ती.

·         वरील उदाहरणात प्रति, , यथा हे संस्कृत भाषेतील उपसर्ग लागून तयार झालेले शब्द आहेत. संस्कृत मधील उपसर्गाना अव्यय मानले जाते.

·         वरील उदाहरणामध्ये हे उपसर्ग प्रारंभी लागून सामासिक शब्द तयार झालेला आहे व ह्या उपसर्गाना सामासिक शब्दांत अधिक महत्व आहे.

क) अरबी व फारसी भाषेतील शब्द

उदा.    

1.    दर (प्रत्येक)        -      दारसाल, दरडोई, दरमजल.

2.    गैर (प्रत्येक)        -     गैरसमज, गैरहजर, गैरशिस्त

3.    हर (प्रत्येक)        -      हररोज, हरहमेशा

4.    बे (विरुद्ध)          -      बेकायदा, बेमालूम, बेलाशक, बेलाईक

·         वरील उदाहरणात संस्कृत भाषेमध्ये फारसी व अरबी भाषेतील उपसर्ग लागून मराठी भाषेत अव्ययीभाव समासाची उदाहरणे तयार झाली आहेत.

2 ) तत्पुरुष समास :

·         ज्या समासात दुसरे पद महत्वाचे असून समासाचा विग्रह करतांना गाळलेल्या शब्द, विभक्तीप्रत्यय लिहावा लागतो, त्यास तत्पुरुषसमास असे म्हणतात. 

थोडक्यात ज्या समासात दूसरा शब्द प्रधान / महत्वाचा असतो त्यास तत्पुरुष समास असे म्हणतात.

·         उदा.    

1.    महामानव      -   महान असलेला मानव

2.    राजपुत्र        -    राजाचा पुत्र

3.    तोंडपाठ       -    तोंडाने पाठ

4.    गायरान       -    गाईसाठी रान

5.    वनभोजन     -    वनातील भोजन

·         वरील उदाहरणांमध्ये पहिल्या पदापेक्षा दुसरे पद प्रधान आहे आणि या शब्दांना ला, चा, ने हे विभक्ती प्रत्यय वापरावे लागतात म्हणून त्यास तत्पुरुष समास असे म्हणतात.

·         तत्पुरुष समासाचे 7 उपप्रकर पडतात.

i) विभक्ती तत्पुरुष

·         ज्या तत्पुरुष समासात कोणत्या तरी विभक्तीचा अर्थ व्यक्त करणार्याग शब्दयोगी अव्ययाचा लोप करून दोन्ही पद जोडली जातात त्यास विभक्ती तत्पुरुष विभक्ती तत्पुरुष समास असे म्हणतात.

·         वरील उदाहरणांत वेगवेगळ्या सामासिक शब्दांचा विग्रह केला असता त्याला वेगवेगळ्या विभक्त्या लागलेल्या दिसतात.

·         विभक्ती तत्पुरुष समासाची काही उदाहरणे:

ii) अलुक तत्पुरुष

·         ज्या विभक्ती तत्पुरुष अमासात पहिला पदाच्या विभक्ती प्रत्ययाचा लोप होत नाही त्यास अलुक तत्पुरुष समास म्हणतात.

·          

·         अलुक म्हणजे लोप न पावणारा म्हणजे ज्या विभक्ती तत्पुरुष सामासिक शब्दांच्या पहिल्या पदाचा लोप होत नाही त्यास अलुक तत्पुरुष समास असे म्हणतात.

 

·         उदा. 

1.    तोंडी लावणे

2.    पाठी घालणे

3.    अग्रेसर

4.    कर्तरीप्रयोग

5.    कर्मणी प्रयोग

iii) उपपद तत्पुरुष/कृदंत तत्पुरुष

·         ज्या तत्पुरुष समासात दुसरे पद महत्वाचे असून व ते दुसरे पद हे धातुसाधीत/ कृदंत म्हणून त्या शब्दांत येते तसेच त्याचा वाक्यात स्वतंत्रपणे उपयोग करता येत नाही अशा समासास उपपद तत्पुरुष/कृदंत तत्पुरुष असे म्हणतात.

·         उदा.    

1.    ग्रंथकार          -    ग्रंथ करणारा

2.    शेतकरी          -    शेती करणारा

3.    लाचखाऊ        -    लाच खाणारा

4.    सुखद            -    सुख देणारा

5.    जलद            -    जल देणारा

·         वरील उदाहरणांमध्ये पहिल्या पदात ग्रंथ, शेत, लाच, सुख, जल हे सर्व धातू आहेत.

·         नंतर दुसर्याद पदात त्यांचे रूपांतर धातुसाधीतांमध्ये झाले आहे म्हणून ते उपपद तत्पुरुष/कृदंत तत्पुरुष समासाची उदाहरणे आहेत.

·         इतर उदाहरणे : लाकूडतोडया, आगलाव्या, गृहस्थ, कामकरी, कुंभकर्ण, मार्गस्थ, वाटसरु.

iv. नत्र तत्पुरुष समास

·         ज्या तत्पुरुष सामासातील प्रथम पद हे नकारार्थी असते त्यास नत्र तत्पुरुष असे म्हणतात.

·         म्हणजेच ज्या समासातील पहिले पद हे अभाव किंवा निषेध दर्शवतात त्यांना नत्र तत्पुरुष समास असे म्हणतात.

·         उदा. (अ, अन्, , ना, बे, नि, गैर इ.)

उदा.    

1. अयोग्य      -    योग्य नसलेला

 

2. अज्ञान       -    ज्ञान नसलेला

 

3. अहिंसा       -     हिंसा नसलेला

 

4. निरोगी       -    रोग नसलेला

 

5. निर्दोष        -    दोषी नसलेला

 

v) कर्मधारय तत्पुरुष समास

·         ज्या तत्पुरुष समासातील दोन्ही पदे प्रथमा विभक्तीत असतात व त्या दोन्ही  पदांचा संबंध विशेषण व विशेष्य या प्रकारचा असतो त्यालाच कर्मधारेय तत्पुरुष समास म्हणतात.

·         उदा.    

1.    नील कमल      -    नील असे कमल

2.    रक्तचंदन       -    रक्तासारखे चंदन

3.    पुरुषोत्तम       -    उत्तम असा पुरुष

4.    महादेव          -    महान असा देव

5.    पीतांबर          -    पीत असे अंब ज्याचेपीत (पिवळे,अंबरवस्त्र)

6.    मेघशाम         -    मेघासारखा काळा

7.    चरणकमळ      -    चरण हेच कमळ

8.    खडीसाखर       -    खडयसारखी साखर

9.    तपोबळ          -    तप हेच बळ

·         कर्मधारण्य समासाचे पुढील 7 उपप्रकर पडतात.

    अ) विशेषण पूर्वपद कर्मधारय

§  जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दातील पहिले पद विशेषण असते अशा समासला विशेषण पूर्वपद कर्मधारय असे म्हणतात.

§  उदा.

1. महादेव         -    महान असा देव

 

2. लघुपट          -    लहान असा पट

 

3. रक्तचंदन      -    रक्तासारखे चंदन

 

आ) विशेषण उत्तरपद कर्मधारय

§  जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दांतील दुसरे पद विशेषण असते अशा समासाला विशेषण उत्तरपद कर्मधारेय असे म्हणतात.

§  उदा.

1. पुरुषोत्तम     -    उत्तम असा पुरुष

 

2. मुखकमल     -    मुख हेच कमल

 

3. वेशांतर        -    अन्य असा वेश

 

4. भाषांतर       -    अन्य अशी भाषा

 

इ) विशेषण उभयपद कर्मधारय

§  जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दातील दोन्ही पदे विशेषण असतात तेव्हा अशा समासला विशेषण उभयपद कर्मधाश्य असे म्हणतात.

§  उदा.  

1. लालभडक      -    लाल भडक असा

 

2. श्यामसुंदर     -    श्याम सुंदर असा

 

3. काळाभोर      -    काळा भोर असा

 

4. पांढराशुभ्र     -     पांढरा शुभ्र असा

 

5. हिरवागार     -    हिरवागार असा

 

6. कृष्णधवल    -    कृष्ण धवल असा

 

ई) उपमान पूर्वपद कर्मधाराय

·         जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दांत पहिले पद उपमान असते म्हणजे त्या सामासिक शब्दांतील पूर्वपदापेक्षा उत्तरपदाला जास्त महत्व दिलेले असते.

·         उत्तरपदाचे विशेषणासारखे काम करते त्याला उपमान पूर्वपद कर्मधारय समास असे म्हणतात.

 

§  उदा.  

1. वज्रदेह          -      वज्रासारखे

 

2. चंद्रमुख         -      चंद्रासारखे मुख

 

3. राधेश्याम       -      राधेसारखा शाम

 

4. कामलनयन     -      कमळासारखे नयन

 

उ) उपमान उत्तरपद कर्मधारय

§  जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दांत दुसरे पद उपमानअसते म्हणजे त्या सामासिक शब्दांतील उत्तरपदपेक्षा पूर्वपदाला जास्त महत्व दिलेले असते व त्या शब्दांत उत्तरपद हे पूर्वपदाचे विशेषणासारखे काम करते त्याला उपमान उत्तरपद कर्मधारय समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. मुखचंद्र        -    चंद्रासारखे मुख

 

2. नरसिंह         -    सिंहासारखा नर

 

3. चरणकमल     -    कमलासारखे चरण

 

4. हृदयसागर      -    सागरासारखे चरण

 

ऊ) अव्यय पूर्वपद कर्मधारय

§  जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दांत पहिले पद अव्यय असेन त्याचा उपयोग विशेषणासारखा केला जातो अशा समासाला अव्यय पूर्ववाद कर्मधारय असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. सुयोग     -    सु (चांगला) असा योग

 

2. सुपुत्र      -    सु (चांगला) असा पुत्र

 

3. सुगंध     -    सु (चांगला) असा गंध

 

5. सुनयन    -    सु (चांगला) असा डोळे

 

5. कुयोग     -    कु (वाईट) असा योग  

 

6. कुपुत्र      -    कु (वाईट) असा पुत्र  

 

ए) रूपक कर्मधारय

§  जेव्हा कर्मधारय सामासिक शब्दांतील दोन्ही पदे एकरूप असतात. तेव्हा अशा समसाला रूपक कर्मधारय समास असे म्हणतात.  

§  उदा.    

1. विधाधन       -    विधा हेच धन

 

2. यशोधन       -    यश हेच धन

 

3. तपोबल        -    ताप हेच बल

 

4. काव्यांमृत     -     काव्य हेच अमृत

 

5. ज्ञांनामृत      -    ज्ञान हेच अमृत     

vi) व्दिगू समास

§  ज्या कर्मधारय समासातील पहिले पद हे संख्याविशेषण असते व त्या सामासिक शब्दांतून एक समूह सुचविला जातो. त्याला व्दिगू समास असे म्हणतात.

§  या समासास संख्यापूर्वपद कर्मधारय कर्मधारय समास असेही म्हणतात.

§  उदा.    

1. नवरात्र       -    नऊ रात्रींचा समूह

 

2. पंचवटी       -    पाच वडांचासमूह

 

3. चातुर्मास     -    चार मासांचा समूह

 

4. त्रिभुवन      -    तीन भुवनांचा समूह

 

5. तैलोक्य      -    तीन लोकांचा समूह

 

6. सप्ताह       -    सात दिवसांचा समूह

 

7. चौघडी        -    चार घडयांचा समुह

 

vii) मध्यमपदलोपी समास

§  ज्या सामासिक शब्दांतील पहिल्या पदांचा दुसर्‍यासाठी पदाशी संबंध दर्शविणारी मधली काही पदे लोप करावी लागतात त्या समासाला मध्यमलोपी समास असे म्हणतात.

§  या समासास लुप्तपद कर्मधरय समास असेही म्हणतात.

§  उदा.    

1. साखरभात     -    साखर घालून केलेला भात

 

2. पुरणपोळी     -    पुरण घालून केलेली पोळी

 

3. कांदेपोहे       -    कांदे घालून केलेले पोहे

 

4. घोडेस्वार      -    घोडयावर असलेला स्वार

 

5. बालमित्र       -    बालपणापासूनचा मित्र

 

6. चुलत सासरा  -    नवर्यानचा चुलता या नात्याने सासरा

 

7. लंगोटी मित्र    -    लंगोटी घालत असल्यापासूनचा मित्र

 

 व्दंव्द समास :

§  ज्या समासातील दोन्ही पद अर्थदृष्टया समान दर्जाचे असतात. त्यास 'व्दंव्द समास' असे म्हणतात.

§  या समासातील पदे आणि, अथवा, , किंवा या उभयान्वयी अव्ययांनी जोडलेली असतात.

§  उदा.    

1. रामलक्ष्मण     -    राम आणि लक्ष्मण

 

2. विटीदांडू        -    विटी आणि दांडू

 

3. पापपुण्य        -    पाप आणि पुण्य

 

4. बहीणभाऊ      -    बहीण आणि भाऊ

 

5. आईवडील      -    आई आणि वडील

 

6. स्त्रीपुरुष        -    स्त्री आणि पुरुष

 

7. कृष्णार्जुन      -     कृष्ण आणि अर्जुन

 

8. ने-आपण      -     ने आणि आण

 

9. दक्षिणोत्तर    -    दक्षिण आणि उत्तर

 

§  व्दंव्द समासाचे खलील 3 प्रकार पडतात.

i). इतरेतर व्दंव्द समास

 

ii). वैकल्पिक व्दंव्द समास

 

iii). समाहार व्दंव्द समास

 

i) इतरेतर व्दंव्द समास

§  ज्या समासाचा विग्रह करतांना आणि, , ही, समुच्चय बोधक उभयान्वयी अव्ययांचा उपयोग करावा लागतो. त्यास इतरेतर व्दंव्द समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. आईबाप        -    आई आणि बाप

 

2. हरिहर          -    हरि आणि हर          

 

3. स्त्रीपुरुष        -    स्त्री आणि पुरुष

 

4. कृष्णार्जुन       -    कृष्ण आणि अर्जुन

 

5. पशुपक्षी         -    पशू आणि पक्षी

 

6. बहीणभाऊ      -    बहीण आणि भाऊ

 

7. डोंगरदर्यान     -    डोंगर आणि दर्याक

 

ii) वैकल्पिक व्दंव्द समास

§  ज्या समासाचा विग्रह करतांना किंवा, अथवा, वा ही विकल्प बोधक उभयन्वयी अव्ययांचा उपयोग करावा लागतो त्यास वैकल्पिक व्दंव्द समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. खरेखोटे         -    खरे आणि खोटे

 

2. तीनचार         -    तीन किंवा चार

 

3. बरेवाईट         -    बरे किंवा वाईट

 

4. पासनापास      -    पास आणि नापास

 

5. मागेपुढे          -    मागे अथवा पुढे

 

6. चुकभूल          -     चूक अथवा भूल

 

7. न्यायान्याय      -     न्याय अथवा अन्याय

 

8. पापपुण्य          -    पाप किंवा पुण्य

 

9. सत्यासत्य        -    सत्य किंवा असत्य

 

iii) समाहार व्दंव्द समास

§  ज्या समासातील पदांचा विग्रह करतांना त्यातील पदांचा अर्थशिवाय त्याच जातीच्या इतर पदार्थाचाही त्यात समावेश म्हणजेच समहार केलेला असतो त्यास समाहार व्दंव्द समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. मिठभाकर        -     मीठ, भाकर व साधे खाधपदार्थ इत्यादी

 

2. चहापाणी         -     चहा, पाणी व फराळाचे इतर पदार्थ

 

3. भाजीपाला        -    भाजी, पाला, मिरची, कोथंबीर यासारख्या इतर वस्तु

 

4. अंथरूणपांघरून   -    अंथरण्यासाठी पांघरण्यासाठी लागणार्‍या वस्तु व इतर कपडे

 

5. शेतीवाडी          -    शेती, वाडी व इतर तत्सम मालमत्ता

 

6. केरकचरा         -    केर, कचरा व इतर टाकाऊ पदार्थ

 

7. पानसुपारी        -    पान, सुपारी व इतर पदार्थ

 

8. नदीनाले          -    नदी, नाले, ओढे व इतर

 

9. जीवजंतू          -    जीव, जंतू व इतर किटक

 

  बहुव्रीही समास :

§  ज्या समासातील कोणतेच पद प्रमुख नसून त्या पदाच्या अर्थापेक्षा वेगळ्या अशा वस्तूंचा किंवा व्यक्तींचा त्यामधून बोध होतो त्या समासाला बहुव्रीही समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. नीलकंठ         -    ज्याचा कंठ निळा आहे असा (शंकर)

 

2. वक्रतुंड          -    ज्याचे तोंड वक्र आहे असा (गणपती)

 

3. दशमुख         -    ज्याला दहा तोंड आहे असा (रावण)

 

§  बहुव्रीही समासाचे खालील 4 उपपक्रार पडतात.

i) विभक्ती बहुव्रीही समास

§  ज्या समासाचा विग्रह करतांना शेवटी एक संबंधी सर्वनाम येते. अशा सर्वनामाची जी विभक्ती असेल त्या विभक्तीचे नाव समासाला दिले जाते त्याला विभक्ती बहुव्रीही समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. प्राप्तधन    -    प्राप्त आहे धन ज्याला तो व्दितीया विभक्ती

 

2. जितेंद्रिय    -    जित आहे इंद्रिये ज्याची तो षष्ठी विभक्ती

 

3. जितशत्रू     -     जित आहे शत्रू ज्याने तो तृतीया विभक्ती

 

4. गतप्राण     -    गत आहे प्राण ज्यापासून तो पंचमी विभक्ती

 

5. पूर्णजल     -    पूर्ण आहेत जल ज्यात असे सप्तमी विभक्ती

 

6. त्रिकोण     -    तीन आहेत कोन ज्याला तो चतुर्थी विभक्ती

 

ii) नत्र बहुव्रीही समास

§  ज्या समासाचे पहिले पद नकारदर्शक असते त्याला नत्र बहुव्रीही समास असे म्हणतात. या समासातील पहिल्या पदात अ, , अन, नि अशा नकारदर्शक शब्दांचा वापर केला जातो.

§  उदा.    

1. अनंत       -    नाही अंत ज्याला तो

 

2. निर्धन       -    नाही धन ज्याकडे तो

 

3. नीरस       -    नाही रस ज्यात तो

 

4. अनिकेत    -    नाही निकेत ज्याला तो

 

5. अव्यय      -    नाही व्यय ज्याला तो

 

6. निरोगी      -    नाही रोग ज्याला तो

 

7. अनाथ       -    ज्याला नाथ नाही असा तो

 

8. अनियमित   -    नियमित नाही असे ते

 

9. अकर्मक     -     नाही कर्म ज्याला ते

 

10. अखंड      -    नाही खंड ज्या ते

 

iii) सहबहुव्रीही समास

§  ज्या बहुव्रीही समासाचे पहिले पद सह किंवा स अशी अव्यये असून हा सामासिक शब्द एखाधा विशेषणाचे कार्य करतो त्यास सहबहुव्रीही समास म्हणतात.

§  उदा.    

1. सहपरिवार     -     परिवारासहित असा जो

 

2. सबल          -    बलासहित आहे असा जो

 

3. सवर्ण         -     वर्णासहित असा तो

 

4. सफल         -    फलाने सहित असे तो

 

5. सानंद         -    आनंदाने सहित असा जो

 

iv) प्रादिबहुव्रीही समास

§  ज्या बहुव्रीही समासाचे पहिले पद प्र, परा, अप, दूर, सु, वि अशा उपसर्गानी युक्त असेल तर त्याला प्रादिबहुव्रीही समास असे म्हणतात.

§  उदा.    

1. सुमंगल        -    पवित्र आहे असे ते

 

2. सुनयना        -    सु-नयन असलेली स्त्री

 

3. दुर्गुण          -    वाईट गुण असलेली व्यक्ती

 

4. प्रबळ          -     अधिक बलवान असा तो

 

5. विख्यात       -     विशेष ख्याती असलेला

 

6. प्रज्ञावंत       -      बुद्धी असलेला.

 

वाक्य पृथक्करण व त्याचे प्रकार

·         पृथक म्हणजे वेगळे किंवा सुटे करणे असा होतो आणि वाक्यापृथक्करण म्हणजे वाक्यातील भाग वेगळा करून दाखविणे.

·         वाक्य:

उद्देश विभाग (उद्देशांग)

विधेय विभाग (विधेयांग)

1) उद्देश (कर्ता)

1) कर्म व कर्म विस्तार

2) उद्देश विस्तार

2) विधानपूरक

 

3) विधेय विस्तार

 

4) विधेय (क्रियापद)

उद्देश विभाग/ उद्देशांग :

1 ) उद्देश (कर्ता)

·         वाक्य ज्याच्या विषयी माहिती सांगते तो वाक्याचा कर्ता असतो. क्रियापदातील धातुला णारा, णारे, णारी, हे प्रत्यय जोडून कोण / काय ने प्रश्न विचारल्यास उत्तर कर्ता येते.

 

उदा.    

a.    रामुचा शर्ट फाटला. (फाटणारे काय/कोण?)

b.    रामरावांचा कुत्रा मेला. (मरणारे कोण/काय?)

c.    मोगल साम्राज्याचा अंत झाला. (होणारे-कोण/काय?)

d.    रामुच्या घराचा दरवाजा उघडला. (उघडणारे कोण/काय?)

·         वरील वाक्यात शर्ट, कुत्रा, अंत, दरवाजा हे उद्देश (कर्ता) आहेत.

2) उद्देश विस्तार

·         कर्त्याविषयी माहिती सांगणारे शब्द जर कर्त्यापूर्वी असतील. तर अशा शब्दांना उद्देश विस्तारात लिहावे.

उदा.    

a.    शेजारचा रामु धपकन पडला.

b.    नियमित अभ्यास करणारे विधार्थी पास होतात.

 विधेय विभाग/ विधेयांग :

·         वाक्यात ज्यांच्यावर क्रिया घडते ते कर्म असते म्हणजेच क्रिया सोसणारे कर्म असते.

उदा.    

a.    रामने झडाचा पेरु तोडला. (या वाक्यात तोडण्याची क्रिया पेरु वर झाली म्हणून ते कर्म).  
  

b.    गवळ्याने म्हशीची धार काढली. (या वाक्यात काढण्याची क्रिया धारेवर झाली म्हणून ते कर्म).

1) कर्म विस्तार

·         कर्मापूर्वी कर्माविषयी माहिती सांगणारा शब्द म्हणजे 'कर्म विस्तार' होय.

उदा.    

a.    रामने झाडाचा पेरु तोडला.

b.    गवळ्याने काळ्या म्हशीची धार काढली.

2) विधान पूरक

·         कर्त्याविषयी माहिती सांगणारा शब्द जर कर्त्यांनंतर आला तर ते 'विधानपूरक' असते.

उदा.    

a.    राम राजा झाला.

b.    संदीप शिक्षक आहे.

c.    शरदाच्या चांदण्यात गुलमोहर मोहक दिसतो.

·         वरील वाक्यावरुन राजा, शिक्षक, मोहक ही शब्द कर्त्याविषयी अधिक महितीसांगत आहेत म्हणून त्यांना 'विधानपूरक' असे म्हणतात.

3) विधेय विस्तार

·         क्रियापदास विधेय असे म्हणतात.

·         वाक्यात क्रियापदाविषयी माहिती सांगणार्या शब्दांचा यात समावेश होतो.

·         क्रियापदाला केव्हा/ कोठे/ कसे ने प्रश्न विचारल्यास 'विधेय विस्तार' उत्तर येते.

·         ही सर्व क्रियाविशेषणे असतात.

उदा.    

a.    कुटुंबातील सर्व व्यक्ती रविवारी वनभोजनास गेले.

b.    शरदाच्या चांदण्यात गुलमोहर मोहक दिसतो.

c.    माझा जिवलग मित्र मनीष माझे पत्र पाहताच त्वरित आला.

4) विधेय/क्रियापद

·         वाक्यातील क्रियापदाला 'विधेय' असे म्हणतात.

उदा.    

a.    रमेश खेळतो.

b.    रमेश अभ्यास करतो.

c.    रमेश चित्र काढतो.

 

काळ व त्याचे प्रकार

·         वाक्यात दिलेल्या क्रियापदावरून जसा क्रियेचा बोध होतो, तसेच ती क्रिया कोणत्या वेळी घडत आहे याचाही बोध होतो त्याला 'काळ'असे म्हणतात.

·         काळाचे प्रमुख 3 प्रकार पडतात.

1.     वर्तमान काळ

2.     भूतकाळ    

3.     भविष्यकाळ 

 वर्तमानकाळ :

क्रियापदाच्या रूपावरून क्रिया आता घडते आहे असे जेव्हा समजते तेव्हा तो काळ 'वर्तमानकाळ' असतो.

 

उदा.    

a.     मी आंबा खातो.

b.    मी क्रिकेट खेळतो.

c.     ती गाणे गाते.

d.    आम्ही अभ्यास करतो.

वर्तमानकाळाचे 4 उपप्रकार घडतात.

 

i) साधा वर्तमान काळ

जेव्हा क्रिया ही वर्तमानकाळात घडते तेव्हा त्याला 'साधा वर्तमानकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी आंबा खातो.

b.    कृष्णा क्रिकेट खेळतो.

c.     प्रिया चहा पिते.

ii) अपूर्ण वर्तमान काळ / चालू वर्तमानकाळ

जेव्हा एखादी क्रिया वर्तमान काळात असून ती अपूर्ण किंवा चालू असे तेव्हा त्या वर्तमान काळाला 'अपूर्ण किंवा चालू वर्तमानकाळ'म्हणतात.

 

उदा.    

a.     सुरेश पत्र लिहीत आहे.

b.    दिपा अभ्यास करीत आहे.

c.     आम्ही जेवण करीत आहोत.

iii) पूर्ण वर्तमान काळ

जेव्हा क्रिया ही वर्तमानकाळातील असून ती नुकतीच पूर्ण झालेली असेल तेव्हा त्याला 'पूर्ण वर्तमानकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी आंबा खाल्ला आहे.

b.    आम्ही पेपर सोडविला आहे.

c.     विधार्थ्यांनी अभ्यास केला आहे.

iv) रीती वर्तमानकाळ / चालू पूर्ण वर्तमानकाळ

वर्तमानकाळात एखादी क्रिया सतत घडत असल्याची रीत दाखविली तर त्याला 'रीती वर्तमानकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी रोज फिरायला जातो.

b.    प्रदीप रोज व्यायाम करतो.

c.     कृष्णा दररोज अभ्यास करतो.

 भूतकाळ :

जेव्हा क्रियापदाच्या रूपावरून क्रिया पूर्वी घडून गेलेली असते. असा बोध होतो तेव्हा त्या काळाला 'भूतकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     राम शाळेत गेला.

b.    मी अभ्यास केला.

c.     तिने जेवण केले.

भूतकाळचे 4 उपप्रकार पडतात.

 

i) साधा भूतकाळ

एखादी क्रिया ही अगोदर घडून गेलेली असते व त्या संदर्भात जेव्हा बोलले जाते तेव्हा त्या काळास 'साधा भूतकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     रामने अभ्यास केला

b.    मी पुस्तक वाचले.

c.     सिताने नाटक पहिले.

ii) अपूर्ण/चालू भूतकाळ

एखादी क्रिया मागील काळात चालू होती किंवा घडत होती म्हणजेच त्यावेळेस ती क्रिया अपूर्ण होती तेव्हा क्रियेच्या त्या अवस्थेला 'अपूर्ण भूतकाळ/चालू भूतकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी आंबा खात होतो.

b.    दीपक गाणे गात होता.

c.     ती सायकल चालवत होती.

iii) पूर्ण भूतकाळ

एखादी क्रिया मागील काळात पूर्ण झालेली असते किंवा ती क्रिया पुर्णपणे संपलेली असते, असा जेव्हा अंदाज येतो तेव्हा त्याला 'पूर्ण भूतकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     सिद्धीने गाणे गाईले होते.

b.    मी अभ्यास केला होता.

c.     त्यांनी पेपर लिहिला होता.

d.    राम वनात गेला होता.

iv) रीती भूतकाळ / चालू पूर्ण भूतकाळ

भूतकाळात एखादी क्रिया सातत्याने घडत आलेली असून ती क्रिया पूर्ण देखील झालेली असते. अशा काळाला 'चालू-पूर्ण भूतकाळ' किंवा 'रीती भूतकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.

a.     मी रोज व्यायाम करीत होतो/असे.

b.    ती दररोज मंदिरात जात होती/असे.

c.     प्रसाद नियमित शाळेत जात होता/असे. 

 भविष्यकाळ :

क्रियापदाच्या रूपावरुन जेव्हा एखादी क्रिया ही पुढे घडणार आहे, याची जाणीव होते, तेव्हा त्या काळाला 'भविष्यकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी सिनेमाला जाईल.

b.    मी शिक्षक बनेल.

c.     मी तुझ्याकडे येईन.

i) साधा भविष्यकाळ

जेव्हा एखादी क्रिया पुढे घडणार असेल असा बोध होतो अशा वेळी 'साधा भविष्यकाळ' असतो.

 

उदा.    

a.     उधा पाऊस पडेल.

b.    उधा परीक्षा संपेल.

c.     मी सिनेमाला जाईल.

ii) अपूर्ण / चालू भविष्यकाळ

जेव्हा एखादी क्रिया ही भविष्यकाळामध्ये चालू असेल किंवा पूर्ण झाली नसेल तेव्हा त्याला 'अपूर्ण भविष्यकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी आंबा खात असेल.

b.    मी गावाला जात असेल.

c.     पूर्वी अभ्यास करत असेल.

d.    दिप्ती गाणे गात असेल.

iii) पूर्ण भविष्यकाळ

जेव्हा एखादी क्रिया ही भविष्यकाळातील असून ती पूर्ण झाल्याची जाणीव झालेली असते तेव्हा त्याला 'पूर्ण भविष्यकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी आंबा खाल्ला असेल.

b.    मी गावाला गेलो असेल.

c.     पूर्वाने अभ्यास केला असेल.

d.    दिप्तीने गाणे गायले असेल.

iv) रीती भविष्यकाळ / चालू पूर्ण भविष्यकाळ

जेव्हा एखादी क्रिया ही भविष्यात नेहमी घडणारी असेल, तर त्याला 'रीती/ चालू पूर्ण भविष्यकाळ' असे म्हणतात.

 

उदा.    

a.     मी रोज व्यायाम करत जाईल.

b.    पूर्वी रोज अभ्यास करत जाईल.

c.     सुनील नियमित शाळेत जाईल.

उभयान्वयी अव्यय व त्याचे प्रकार

·         दोन शब्द किंवा दोन वाक्यात जोडणार्‍या शब्दांना 'उभयान्वयी अव्यय' म्हणतात. 

·         उभायान्वयी अव्ययाचे 2 प्रकार पडतात.

1.     समानत्वदर्शक / प्रधानत्वसूचक उभयानव्यी अव्यय   

2.     असमानत्वदर्शक / गौणत्वसूचक उभयानव्यी अव्यय

 समानत्वदर्शक उभयान्वयी अव्यय/ प्रधानत्वसूचक :

·         जेव्हा उभयान्वयी अव्ययांनी जोडलेले दोन वाक्य हे समान दर्जाचे असतात म्हणजे ती वाक्य स्वतंत्र असतात ते एकमेकांवर असलंबून नसतात. अशी वाक्य म्हणून येतात.

·         यांचे पुढील 4 प्रकार पडतात.

1. समुच्चयबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         ही उभयान्वयी दोन स्वतंत्र वाक्यांना जोडतात तसेच पहिल्या विधानात/ वाक्यात आणखी भर टाकण्याचे काम करतात.

·         उदा. , अन्, आणि आणखी, , शि, शिवाय, आणिक इत्यादी.

1.     घरी पाहुणे आले आणि लाईट गेली.

2.     राम शाळेत जाण्यासाठी निघाला व पाऊस आला.

3.     आज डब्यात भाजी, पोळी आणली अन् लोनचेण आहे.

4.     चिमणीने घरट्याबाहेर मान काढली व किलबिलाट केला.

2. विकल्पबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         ही उभयान्वयी अव्यये वाक्यातील दिलेल्या गोष्टीपैकी एकालाच पसंती दर्शवतात.

·         उदा. अथवा, वा, की, किंवा, अगर इत्यादी.

1.     तुला चहा हवा की कॉफी ?

2.     करा किंवा मरा.

3.     सिनेमाला येतोस की, घरी जातोस ?

3. न्यूनत्वबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         पहिल्या वाक्यातील कमीपणा किंवा उणीव दर्शवणारे वाक्य या उभयान्वयी अव्ययाने जोडले जातात.

·         उदा. परंतु, पण, बाकी, किंतु, परी इत्यादी.

1.     मरावे, परी किर्तीरूपी उरावे.

2.     लग्न छान झाले पण जेवण बरोबर नव्हते.

3.     त्याने अभ्यास केला, परंतु नापास झाला.

4. परिणामबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         पहिल्या वाक्यातील एखाधा गोष्टीचा परिणाम हा समोरील वाक्यात दर्शवण्यासाठी परिणामबोधक उभयान्वयी अव्यय वापरतात.

·         उदा. म्हणून, याकरिता, सबब, यास्वत, तेव्हा, तस्मात इत्यादी.

1.     तू गृहपाठ करीत नाहीस म्हणून तुला शिक्षक रागवतात.

2.     ती नेहमी अभ्यास करते याकरिता ती नेहमी प्रथम येते.

3.     गोडी येतांना बंद पडली, सबब मला उशीर झाला.

 असमानत्वदर्शक किंवा गौणत्वसूचक उभयान्वयी अव्यय :

·         उभयान्वयी अव्ययांनी जोडलेल्या दोन वाक्यांपैकी एक वाक्य प्रधान व त्याच्या तुलनेत दुसरे वाक्य गौण असते तेव्हा अशा अव्ययांना 'असमानत्वदर्शक उभयान्वयी अव्यय' असे म्हणतात.

·         यांचे पुढील 4 प्रकार पडतात.

1. स्वरूपबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         या उभयान्वयी अव्ययामुळे एका वाक्याचे स्वरूप दुसर्‍या वाक्यात कळते.

·         उदा. म्हणून, म्हणजे, की, जे इत्यादी.

1.     एक किलोमीटर म्हणजे एक हजार मीटर

2.     तो म्हणाला, की मी हरलो.

3.     मी मान्य करतो की, माझ्याकडून चुकी झाली.

2. उद्देशबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         या उभयान्वयी अव्ययांमुळे प्रधान वाक्याचा उद्देश/हेतु हा गौण वाक्यात कळतो.

·         उदा. म्हणून, सबब, यास्तव, कारण,की इत्यादी.

1.     चांगले उपचार मिळावेत, यास्तव तो मुंबईला गेला.

2.     चांगले गुण मिळावेत, म्हणून ती खूप अभ्यास करते.

3.     विजितेपद मिळावे यावस्त त्यांनी खूप प्रयत्न केले.

3. करणबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         या उभयान्वयी अव्ययामुळे एका वाक्याचे कारण हे दुसर्‍या वाक्यामध्ये कळते.

·         उदा. कारण, का, की इत्यादी.

1.     त्याला यश मिळाले कारण त्याने खूप मेहनत घेतली.

2.     मला गृहशास्त्राची माहिती नाही, कारण की, माझ्या अभ्यासक्रमात तो विषय नव्हता.

4. संकेतबोधक उभयान्वयी अव्यय -

·         या उभयान्वयी अव्ययामुळे एखादी कृती घडण्यामागे विशिष्ट अट सूचित असते. गौण वाक्यात अट (संकेत) दर्शवली जाते व प्रधान वाक्यात त्याचा परिणाम झालेला दिसतो.

·         उदा. जर-तर, जारी-तरी, म्हणजे, की, तर इत्यादी

1.     जर दळण आणल तर स्वयंपाक होईल.

2.     नोकरी मिळविली म्हणजे गाडी घेऊन देईल.

तू घरी आला की, आपण सिनेमाला जाऊ.   

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